Sthapatyam
Volume.1
Issue.5
डाॅ0 अरूण केसरवानी
हरियाणा के कुरूक्षेत्र जिले में शेख चेहली का मकबरा देश का प्रमुख राष्ट्रीय स्मारक है। इसे दाराशिकोह ने शेख चेहली की याद में 1650 ई. में बनवाया था। यह मकबरा दाराशिकोह (20 मार्च 1615 ई.-30 अगस्त 1659 ई.) के पठन पाठन और अध्यात्मिक ज्ञान का मौलिक प्रतीक था। शेख मुइनुद्दीन चिश्ती जो लगभग 1192 ई. में भारत आये, इस मत के संस्थापक थे। निजामुद्दीन औलिया, नसीरूद्दीन चिराग-दिल्ली इस सम्प्रदाय के प्रसिद्ध सूफी सन्त थे।
हरियाणा में हाँसी नामक स्थान उनका केन्द्र था लेकिन मुगलो के समय थानेसर और पानीपत उनके प्रमुख केन्द्र हो गये। हजरत जलालुद्दीन (मृत्यु 1582 ई.) थानेसर के प्रसिद्ध सूफी सन्त थे। वे अकबर के समकालीन थे। 1581 ई. में अकबर थानेसर आया था तो उनसे मिला था। उन्होने कुछ पुस्तकें लिखीं और यहाँ एक मदरसे की स्थापना की। उसके बाद उनके दामाद शेख निजामलदीन यहाँ के प्रसिद्ध सूफी सन्त हुये। सम्राट अकबर से उनके अच्छे सम्बन्ध थे पर जहाँगीर से उनके सम्बन्ध ठीक नहीं थे और वे बल्ख (मध्य एशिया) में जाकर बस गये जहाँ 1627 ई. में उनकी मृत्यु हो गई।
थानेसर की इसी परम्परा में शेख चेहली हुये। उनका असली नाम अब्दुर्रहीम बन्नूरी था। वे बन्नूर के रहने वाले थे। वे शेख जलाला थानेसरी से मिलने ईरान से यहाँ आये और बाद में यहीं बस गये। उनके कई नाम थे पर शेख चेहली लोकप्रिय नाम था। प्रसिद्ध सेखीबाज शेख चिल्ली से इनका दूर का भी रिश्ता नहीं था। चालीस दिन तक लगातार खुदा की इबादत और चिल्ला करने के कारण इनको चिल्ली (चेहली) कहा जाने लगा था।
वे दाराशिकोह के अध्यात्मिक गुरू थे। मुहम्मद तुगलक, बहलोल लोदी, सिकन्दर लोदी और हुमायूँ के फारसी लेखों से पता चलता है कि थानेसर के स्थानीय अफसरों ने यहाँ कई इमारतें बनवाई, जो अब खंडहर हो गई, जो बची हैं उसमें पथरिया मजिस्द, शेख चेहली का मकबरा और मदरसा प्रमुख है।
हरियाणा के इतिहास में शेख चेहली का मकबरा विशिष्ट स्थान रखता है। यह मकबरा हर्ष के टीले के पूर्वी किनारे पर स्थित है। शेरशाह सूरी (1540-1545 ई.) की बनवाई ग्रैंट ट्रंक रोड इसी मकबरे के प्रवेश द्वार के पास से होकर जाती थी।
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यह मकबरा लगभग 40.50 मी. लम्बे और 52.10 मी. चौड़े परकोटे के मध्य स्थित है। परकोटे में 12 छतरियाँ है जिनके चारों ओर लगभग 50 से.मी. उँची जालीदार वेेदिका है। छतरियों पर चूना सुर्खी का प्लास्टर, नीले, पीले, सन्तरी, सफेद और लाल रंग की टाइलें लगी थी जिनके अब अवशेष बचे हैं।
मकबरा आठ कोंणो वाले चबुतरे पर बना है। फर्श से चबुतरे की उँचाई लगभग 63 से.मी. और इसकी एक भुजा की लम्बाई 10.30 मी. है। मकबरे का आधार योजन अष्टकोणीय है। शेख का मजार चबूतरे के फर्श से 89 से.मी. की उँचाई पर स्थित है और उसकी एक भुजा की लम्बाई 5.50 मी. है। इसके कोने में आठ मिनारें है जिससे इसकी सुन्दरता में चार-चाँद लग जाते हैं। मकबरे के पास बाद का बना गजपृष्टाकार छत का एक और मकबरा है।
इस मकबरे में कुछ घटिया किस्म के संगमरमर का प्रयोग हुआ है जिसे देखकर ऐसा लगता है संभवतः ताज महल के पत्थरों की तरह इन्हें भी इटली से मंगवाया गया हो या ताज महल के बचे हुये संगमरमर से इसका निर्माण हुआ हो। 1962 में भारत सरकार ने इसका अधिग्रहण कर राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया।
रेनु पाण्डेय
संपादक
स्थापत्यम् जर्नल